ठंडी हवा के
झोंको संग, जब
बूंदे दिल पे
पड़ती हैं
ऐसा लगता है
मानो, ये बारिश
कुछ कहती है
कहती है बरस
जा, या इंतज़ार
को त्यागने को
कहती है
कभी गिर के
टूट जाने को,
तो कभी भागने
को कहती है
कभी लगता है
खुदको भुला के,
किसी के प्रेम
में नाचने को
कहती है
कभी काले मौसम
में, पलके भिगोने
को कहती है
कभी कहती है
अब ग्रीष्म टल
गया, और उम्मीदें
नयी उत्पन्न हुई
हैं
कभी कहती है
अब शीत आने
को है, और
सुविधायें शन हुई
हैं
कुछ सीख दे
जाती है
आसमाँ की उँचाइयों
से बरसी इसकी
बोली
देवोँ का संदेश
सुनती है
ये कहती है
जब प्रतिशोध के
बादल बरस जायें,
फिर रुकने की भी
आवश्यकता है
केवल उसके लिए
नही जिसने तुम्हे
पूर्व शति पहुँचाई
पर चूँकि ये तुम्हारे
चित्त की अपेक्षा
है
बरसात केवल काले
बादल करा करते
हैं
पर बरसात के पश्चात
वही मेघ चमकते
हैं
कालातीत
काले अभ्रों का
स्वागत कोई न
करता है
न गुज़रती घटा से
आशा कोई रखता
है
बादल जीवन जीने
का राज़ भी
समझाते हैं
और वर्षा रूपी शब्दों
में जीवन के
दो नियम बतलाते
हैं
अर्ध जीवन व्यतीत
होता है पूंजी
के संग्रह मैं
जो पूंजी जीवन जीने
को वजह दे,
उस उद्देश्य के
अन्वेषण में
वो एक पूंजी,
जो मानव प्राण
प्रतिष्ठा की अधिकारी
है
वो मकसद, जिसके समक्ष
स्वजीवन निरर्थकारी है
आधा जीवन इस
पूंजी की अमानत
है
बाकी आधा, इसकी
मुक्ति का पाठ
जब पा लो
उसे, तब ये
न भूलना
के नित्य नही है,
उसका जीवन में
ठहरना
जीवन, स्वयं स्थायी होने
का आश्वासन तक
नही देता
तो जीवन में
उसकी समक्षता के
स्थिर होने का
प्रश्न ही नही
होता
तुम्हारा
प्रेम अनित्य है,
वो तुम्हारे उपरांत
जीवंत रहेगा
पर न प्रेमी,
न प्रेरि आने
वाले कल में
बचेगा
जीवन में यह
जाना आवश्यक है,
कि त्याग भी
प्रेम का ही
भाव है
विनयशीलता
से किसिको छोड़
देना, प्रेम का
संकेत महान है
अवश्य, वो घड़ी
सरल नही होती,
पर प्रेम की
परीक्षा केवल पाने
में तो नही
प्रेम की सच्ची
परीक्षा तब ली
जाती है, जब
जीवन के आधार
को छोड़ने का
समय आता है
तब वर्षा होती है,
कभी शांतिपूर्व, कभी
विनाश-संग लिए
होती है
पर पानी अवश्य
छूटता है, चूँकि
श्रिश्टी को परिवर्तन
की आवयशकता होती
है
बादल जीवन जीने
का राज़ भी
समझाते हैं
और वर्षा रूपी शब्दों
में जीवन के
दो नियम बतलाते
हैं
आधा जीवन व्यतीत
होता है पूंजी के संग्रह में
और आधा उसे विनयपूर्वक
छोड़ने में
- विशाल गुप्ता
19 मई 2013