16 December, 2022

ख्वाहिश

एक उदासी सी बैठी है आज ज़हन में

मानो मन फिर कोई ख्वाहिश कर बैठा है

जैसे कोई सितारा चमक उठा है

जो नज़रो के पास सहि, पर साँसों से दूर है

 

जैसे किसी झरने ने अभी-अभी इठलाना सीखा हो

जैसे दिलकश हुस्न ने अभी-अभी इठलाना सीखा हो

जैसे सर्दी की हवाओं ने धूप की चादर ओढ़ी हो

जैसे बारिश की बूँद से धरती महकी हो

 

दिल में अरमानो की ऐसी कश्मकश सी जगी है

की लहरों संग समुन्दर में गोते लगाने को जी करता है

और फिर किनारे पहुँच किसी चाहत को बाहों में लिए

आसमान पर ढलते सूरज के तिलक को निहारने का जी करता है

 

ये जो जज़्ब-जवानी की मोहलत ज़िन्दगी ने दी है

इसने सनक ने कभी सनत को जाना ही नहीं

ये तो सिर्फ इश्क़--तराने गाने को बेताब

वक़्त-दर-वक़्त नए सफर और हमसफ़र की तलाश करता है

 

एक उदासी सी बैठी है आज ज़हन में

मानो मन फिर कोई ख्वाहिश कर बैठा है

शायद कोई सितारा टूटा है आज आसमां में

शायद साँसों को रोकने को चल पड़ा है

 

विशाल गुप्ता

अप्रैल २१, २०२२