27 August, 2014

कवि

जब पाया खुदको माता की आँखो में मैने
तब लगा आज जीवित हो गया हूँ मैं

जब सूर्य को देखा पहली बार इन आँखो से
तब लगा आज देख भी सकता हूँ मैं

जब धरती को दबाया चरणों से मैने
तब लगा आज चल सकता हूँ मैं

जब देखा गोद में शिशुओं को रोते हुए
तब लगा आज पिता हो गया हूँ मैं

पर जब देखी देश की लाचारी
ग़रीबी की फैलती खौफनाक बीमारी
भ्रष्टाचार से सदा जुड़ता हुआ ये समाज
किस दुर्दशा में है वतन ये हमारा आज
जब देखा ये सब तब लगा मुझे आज
आज से ही लड़ता कवि हो गया हूँ मैं
पाप से लड़ता कवि हो गया हूँ मैं
पहली बार ये लगा कि कवि हो गया हूँ मैं
आज से ही लड़ता कवि हो गया हूँ मैं


- विशाल गुप्ता