जो तुम न थी तो ज़िंदगी ज़िंदगी न थी
जो तुम्हारे पास आने की कोशिश की तो तुम तुम न थी
जो तुमसे दूर जाने की भी मैने कोशिश की
तो जो बची वो कहानी कहानी मेरी न थी
तुमसे दूर रहने का वादा कर
तुम्हारी यादों को खुदसे अलग करने का इरादा कर
कुछ कदम मैने आगे जो लिए
रास्ता तो मिला पर सामने कोई मंज़िल न थी
क्या प्यार को इतना भी मुश्किल बना देना सही है
कि तुम्हारी एक तस्वीर भी खुदसे अलग कर देनी पड़े
क्या तुम्हारी खुशी इतनी ज़रूरी है
की मेरी आवाज़ कभी तुम तक न पहुँच सके
वादा देने में मैं देर नही करता
ख़ासकर अगर वादा तुमसे करना हो
पर अपनी कमज़ोरियाँ भी पहचानता हूँ
इसलिए वो न दे सका जिसके तुम हक़दार हो
नही कह सका तुमसे, की फिर कभी तुम्हारे सामने नही आऊंगा
कभी भूले पन्नो पर, तुम्हे अपने शब्द नही दिखाऊंगा
इसीलिए कहा था तुमसे, की तुम ही खुदको मुझसे अलग कर दो
तुम ये शायद कर भी दो, पर मैं तुमसे प्यार न करना नही सीख पाऊँगा
बरसो से जो बात दिल में बसा रखी थी
जो कहानियाँ होठों में दबा रखी थी
बस एक बार तुमसे कहनी थी
लो कह दी, अब शायद सुकून से मर भी पाऊँगा
हाँ, ये सच हैं मैं खामोश तो नही था
कोई था जिसे ये कहानियाँ सुना रखी थी
या कभी दिल भरके शब्दों में,
इन कहानियों पे कवितायें भी बुना रखी थी
पर कभी सोचा न था, तुम इनका बुरा मान जाओगी
कभी चाहा न था, कि कभी ये तुम्हारे रास्ते में आयेंगी
इस भूल कि, मैने माफी भी माँगी थी उससे,
पर उसे प्यार थोड़े ही था, वो माफी देना सीख नही पाई थी
उसने ही सिखाया था, कि दिल की बातें छुपा के नही रखते
ज़िंदगी से कुछ चाहिए, तो माँगते नही हटते
मैने तो कुछ माँगा भी नही, पर फिर भी लगा वो कुछ दे न पाई
उस "कुछ" की कमी आज भी है, वो अब तक न भर पाई
एक खलिश तो है, पर साँसें नही रुकती
ये रेगिस्तान से इंतज़ार सीखती हैं
कुछ कदम आगे जो लेती हैं,
रास्ता मिलता है, पर सामने मंज़िल नही दिखती
विशाल
गुप्ता
नवंबर
15, 2012