18 September, 2012

तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ


ये कविता मैंने सोच के नहीं लिखी. शायद किसीकी रूह ने मुझसे ये लिखवाई है. मैं केवल माध्यम था. ये सन्देश किसी और ने किसी और के लिए भिजवायें हैं. शायद मेरे लिए, शायद आपके लिए. शायद उसके लिए, जिसका चेहरा ये लिखते वक़्त मेरे ज़हन से नहीं हट रहा था. उम्मीद है मैंने उस रूह की इच्छा का सम्मान करा है. त्रुटी के लिए मैं माफ़ी मांगता हूँ और बिना समय व्यर्थ करे कविता प्रस्तुत करता हूँ.

तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ

तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ
तेरी ज़ुल्फ़ों में उड़ू, तू सुने जो मैं कहूँ
तेरी पायल की छनक पे, ताल बनकर मैं बजूँ
तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ

तेरे पैर जब भी नाचे, झूमे जब ये जग भुला के
तेरी घुंघरू की धुन पर, मैं भी नाचूँ संग तेरे
तेरी पायल पे सजूँ, तेरे क़दमों में रहूँ
तेरी चाल संग मैं चलू, तू रुके तो मैं रुकू
तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ

तेरे हाथ जब थामे कलम, कागज़ पर भी मैं गिरूँ
तेरे शब्दों में अमर होके, स्याही हो तेरी याद बनूँ
अपनी ही यादों को पढ़कर, जब तेरी आँखें भर आयें
तेरी आँखों से आंसूं, मिटाने मैं तेरे दिल में समाऊँ
तेरी उँगलियों से मैं गुजरू, फिर तेरे दिल में समाऊँ
तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ

तेरे होठ जब गुनगुनाएं, खिलखिलाएं मुस्कुराएं
हलकी सी हंसी से जब ये, तेरे चेहरे की रौनक बढायें
उस हंसी में मैं बसूँ, तेरी खुशियों की वजह बनूँ
तेरे होठ जब बात करें, उन बातों में मैं रहूँ
तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ

जब सर्दी की ठंडी हवाएं, तेरे कानों के करीब आयें
बात वो कुछ कह भी जाएँ, दर्द वो कुछ दे भी जाएँ
उन हवाओं में मैं रहूँ, कभी तुझे उनमें बसाऊं
तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ

तेरा दिल भर आके जब, आँखों में अश्क लाये
उन अश्कों में मैं रहूँ, तेरी आँखों से बहूँ
आँखें तू बंद कर लेना, कहीं भूल से गिरूँ
आँखें बंद कर लोगे जब, मेरी ही तस्वीर दिखे
सूनी बाहों को तुम भरना, मैं तेरी बाहों में हूँ
तेरी आँखों पे सजूँ, तेरी बातों में बसूँ

तेरे दिल की धड़कन जब, मुझकों याद कर कभी सतायें
जब तेरे आंसूँ बहें, और मैं उन्हें मिटा पाऊँ
तेरे सिसकते सर को जब मैं, कन्धा देने भी आऊँ
जब बाहें सूनी दिखे, और हाथ खाली रह जाएँ
कह देना इनसे तू, दूर नहीं मैं पास हूँ
तेरी यादों में बसा हूँ, तेरे ज़हन में जिंदा हूँ
तुझको चाहा जीवन भर है, मरने पर भी ये कम है
दिल से पूछो मैं वहीं, धडकनों में ही बसा हूँ
तेरी आँखों पे सजा हूँ, तेरी बातों में बसा हूँ
तेरी पास मैं नहीं तो क्या है
तेरी रूह में जिंदा हूँ

विशाल गुप्ता
अगस्त २०, २०१२