लहर दर लहर, वक़्त कि नदी बहती है
जाते-जाते चुपके से, मेरे कानो में कुछ कहती है
बोल धीमे हैं उसके, हिचकिचाती है शरमाती है
पर नटखट है, बोले बिना भी न रह पाती है
उसके लफ़्ज़ों कि दिशा मैं पहचानता हूँ
मैं जानता हूँ वो क्या कहना चाहती है
हर पल हर लम्हा, वो एक ही तो गीत गाती है
अल्फ़ाज़ बदलते हैं उसके, पर बात वही रह जाती है
आज पूछती है मुझसे, ये परेशान क्यों हैं तुम्हारी आँखें
सोई-सोई खोई-खोई, ये वीरान क्यों हैं तुम्हारी आँखें
यादों में डूबी दिखती हैं, पर चौकान्नी भी हैं तुम्हारी आँखें
मन के दामन में छुपी तस्वीर देखनी है, तो मूंद लो ये आँखें
मैं मुस्कुराता हूँ, वक्त झूठ नही बोलता
बंद होके भी, उसका चेहरा आँखों से नही हटता
पर अब आँखें मून्दने की ज़रूरत नही पड़ती
खुली आँखों से भी, अब उसकी तस्वीर नही हटती
कभी कहीं उसकी मुस्कान खिलती है
तो कभी उसके बालों की परछाई दिखती है
कभी एक चुलबुली सी हँसी ही उसके चेहरे की याद दिलाती है
कभी आँखें मूंद सोना चाहू, तो उसके हिलकोरो की तस्वीर नींद ले जाती है
और जब उसकी आँखों की याद आती है
तो मेरी आँखों से एक बूँद गिर जाती है
खुशी की है शायद, कि कभी मैने उन आँखों को करीब से देखा था
या शायद गम की है, कि उनमें अपने लिए जगह नही बना पाया था
मासूम नहीं हैं मेरी आँखें, शिकार करना चाहती हैं
किसी और हसीं कि, एक हँसी देखना चाहती हैं
पर दिल में उसकी जो तस्वीर है, वो अब कुछ पुरानी-सी हो गयी है
और अब हर हसीं चेहरे मैं, उसे ढूँढने की आदत-सी हो गयी है
धोखा भी तो नहीं खाती मेरी आँखें, उसकी हर अदा पहचानती हैं
और जब उसकी झलक नही मिले, तो खुद ही मायूस हो जाती हैं
पर भीड़ में उसकी एक आहत जब मिले, तो खुशी से भर आती हैं
और वो ना भी मिले तो, उसे ढूँढती चौकन्नि, वीरान, परेशान नज़र आती हैं
ग़लती नही है ये उसकी, ये तो खुदा का ही खेल है
दिल में मोहब्बत भरता है, पर दिल जीतना नही सिखाता
उसकी यादों में जीना सिखा देता है बस
उसे दूर खुश देख, दुखी रहना भी नही सिखाता
और खुदा से जब बहुत शिग्वे कर लिए, तो उसने भी अपना दस्तूर दिखाया
किसी और दिलदार को, मेरे दिल का कायल बनाया
दिल तोड़ा है मैने उसका, पर उसे तो मुझसे प्यार था
इस टूटे दिल पे, उसका ये आखरी वार था
अब मैं किसीकि आँखों का आँसू हूँ
और कहीं मेरे नाम की भी नदी बहती है
लहर दर लहर, हिचकिचाती है शरमाती है
पर पर नटखट है, बोले बिना भी न रह पाती है
विशाल
गुप्ता
अप्रैल
13, 2012